गोक्षुर क्या है?

दवाओं की भारतीय परंपरा प्रणाली, आयुर्वेद में आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली जड़ी-बूटियों में गोक्षुर महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों में से एक है। यह अपने वानस्पतिक नाम, ट्रिबुलस टेरेस्ट्रेस के रूप में भी प्रसिद्ध है। यह एक बहुउद्देशीय जड़ी बूटी के रूप में भी जाना जाता है जो कई बीमारी या विकारों का प्रबंधन कर सकता है। इसे दशमूला में महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों में से एक माना जाता है।

गोक्षुर एक ऐसी जड़ी-बूटी है जो गन्ने की कुछ समान सुगंध के साथ जमीन पर फैलती है। इसकी पत्तियाँ चने के पौधे की पत्तियों के समान होती हैं। इसके फल सिंघाड़े से मिलते जुलते हैं।

मुख्य रूप से दो प्रकार के गोक्षुर उपलब्ध हैं - एक बृहत् गोक्षुर या बड़ा गोक्षुर (पेडलियम म्यूरेक्स) और दूसरा लघू गोक्षुर या छोटा गोक्षुर (ट्रिबुलस टेरिस्ट्रिस) है। गोक्षुर पूरे भारत में, उत्तर और दक्षिण में आसानी से उपलब्ध है।

गोक्षुर के अन्य नाम

गोक्षुर, क्षुरक, त्रिकंट, स्वादुकंटक, गोकंटक, गोक्षुरक, वंशशृंगता, पलंकशा, क्षाणवंश और इक्षुगंधिका। ये सभी गोक्षुर के संस्कृत नाम हैं।

गोक्षुर विभिन्न अन्य नामों से भी प्रसिद्ध है, जिन्हें भारत के विभिन्न भागों में जाना जाता है - हिंदी में गोखरू, पंजाबी में बखरा, बॉम्बे में गोखरू, संस्कृत में बहुकंटक, तेलेगु में चिरुपल्लेरु और उर्दू में गोखरू। इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर भी पर कई अन्य नामों से जाना जाता है, अर्थात् भारत से बाहर - अफगिस्तान में कृण्डा, अरब में बस्ती ताज, अंग्रेजी में कैलट्रोप्स, पर्स में खरेखसक, दक्षिण अफ्रीका में डेविल्स थॉर्न और मलेशिया में नेरिंगिल ।

गोक्षुर का वानस्पतिक विवरण

गोक्षुर एक छोटी सी जड़ी बूटी है जो लगभग २-३ फीट की ऊंचाई तक बढ़ सकती है। इसकी शाखाएँ पौधे के चारों ओर से फैलती हैं। इसकी पत्तियाँ चने के पौधे की पत्तियों के समान होती हैं। इसके फूल छोटे, पीले रंग के होते हैं जो चार से पाँच पंखुड़ियों वाले होते हैं। इसके फल थोड़े पंचकोणीय होते हैं जिनमें दो या तीन तीखे कांटे होते हैं। इसके बीज कई संख्या में होते हैं और उनमें सुगंधित तेल होता है। इसकी जड़ें १० सेंटीमीटर - १३ सेंटीमीटर तक लंबी हो सकती हैं, जो धुएँ के से रंग की होती हैं, जिनमें हल्की - हल्की सुगंध होती है और जो स्वाद में मीठी होती है। पतझड़ के मौसम में इसके फूलों की खूबसूरती देखते ही बनती है।

गोक्षुर के आयुर्वेदिक गुण

गोक्षुर को आयुर्वेद में बहुत ही आवश्यक जड़ी-बूटियों में से एक माना जाता है। यह अच्छी तरह से अपने आयुर्वेदिक गुणों द्वारा वर्णित है जो इस प्रकार हैं:

  • गोक्षुर लघु (पचने में हल्का) और स्निग्धा (तैलीय) प्रकृति का है।
  • गोक्षुर स्वाद में मीठा (मधुरा) और कसैला (कषाय) होता है।
  • पाचन स्वाद के बाद गोक्षुर मीठा (मधुरा) होता है।
  • गोक्षुर वीर्य शक्ति में शीत है।

इनके अलावा, गोक्षुर वात दोष को शांत करने में मदद करता है जो इसे इस दोष से संबंधित समस्याओं के प्रबंधन में कुशल बनाता है। इसमें कुछ अन्य प्रभावी गुण भी हैं जैसे कि यह बल्य (शक्ति प्रदाता), वृष (कामोद्दीपक), अग्निदीपक (जो अग्नि को बढ़ाता है, जिसे पाचन अग्नि के रूप में भी जाना जाता है) जो इसे पाचन में सुधार करने के लिए कुशल बनाता है, पुष्टिकर (जो पूर्ण शरीर में पोषण प्रदान करता है) ।

 

गोक्षुर या ट्रिबुलस टेरिस्ट्रीज़ कई स्वास्थ्य लाभकारी गुणों से भरपूर है, और गोक्षुर का सबसे अच्छा गुण यह है कि ये ये इस तरह के सभी लाभकारी गुणों के साथ, यौन स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में भी एक प्रमुख भूमिका निभाता है और वटी या गुग्गुलु (टैबलेट), चूर्ण (पाउडर) या क्वाथ (काढ़ा) जैसे विभिन्न रूपों में आसानी से उपलब्ध है।

Medically reviewed by Rishabh Verma, RP

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