"कैसे कहूँ कि मेरा..."

बात यह नहीं थी कि वो चुप हो गया था। हर वक़्त बोलते रहना का कोई प्रेशर थोड़ी ना होता है पुराने दोस्तों के बीच। मगर यूँ, कुछ बोलने से अपने आप को रोक लेते हुए चुप हो जाना, यह तो पहले कभी नहीं हुआ था। और ऐसी क्या बात हो सकती है कि यूँ चुप हो जाए समीर।

इतने सालों की दोस्ती है अपनी कि कुछ कुछ भाइयों जैसे थे हम। घर में कोई दिक्कत, पहले (या दूसरे, या तीसरे, या चौथे...) प्यार की बातें, एंट्रन्स इग्ज़ैम की तैयारी रात रात भर, गली मोहल्ले की लड़ाई, सभी में हम एक दूसरे के साथ थे। और अब बड़े शहर में हम दोनो के ऑफ़िस भी पास में थे तो हफ़्ते में तीन चार बार शाम को मिलना हो ही जाता था। मगर आज, "यार, एक बात है" बोलने के बाद वो चुप हो गया और चुप ही रहा। काफ़ी देर बाद बोला, "चलो छोड़ो। कल मैच देखते हैं साथ में?"

मुझे अच्छा नहीं लगा, लेकिन मैच देखने के प्लान में क्या सोचना था। "हाँ, मैच देखते हैं", मैंने कहा और फिर टीम में भुवनेश्वर कुमार खेले या मोहम्मद शामि इस पर हम लोग की बहस हो गयी।

ख़ैर अगले दिन मैच के दौरान वो जो बीस से पैंतीस ओवर के बीच में मामला कुछ आराम आराम से चलता है, तब मैंने पूछ ही लिया, "बेटा, कल कुछ पूछने वाले थे पूछा नहीं?" समीर मुस्कराया। साफ़ था कि वो भी सोच ही रहा था उस बारे में।

बोला, "यार, बात यह है कि..."

मैंने कहा, "अबे बात कैसे भी हो, बोलो।"

"बोलना ही तो आसान नहीं है।"

"अगर सीधे सीधे नहीं बोल रहे हो तो मैं अभी वो जो अमेरिका वाले टॉर्चर करते हैं पानी में डाल के वो करूँगा।"

"वॉटर्बॉर्डिंग कहते हैं उसको।"

"हाँ तुम हो महापंडित। मगर अब नहीं बोले तो बेटा वॉटर्बॉर्डिंग होगी"

मैं उठ कर बाथरूम गया और एक बाल्टी और तौलिया ले आया।

"तो बताओ। बोलने वाले हो कि बाल्टी भरना शुरू करूँ।"

"बकर नहीं करो यार तुम", समीर बोला।

"बकर तुम कर रहे हो। फ़्री फ़ंड का रहस्य बना रहे हो। इसलिए टॉर्चर तो करना हो होगा।"

"अच्छा सुनो, सुनो", हँसते हुए उसने कहा। "बात यह है कि पिछली तीन बार से जब भी मैं राधिका के साथ रहा हूँ तब ना..."

एक बार फिर चुप। मगर इस बार मुझे समझ में आ गया था।

तो उस अधूरे वाक्य को मैंने ही पूरा कर दिया, "तो तुम्हारा लंड खड़ा नहीं हुआ ठीक से। यही ना?"

समीर थोड़ा चौंका, फिर बोला, "हाँ यार। लगता है कुछ प्रॉब्लम हो गयी है। अभी तो उम्र सिर्फ़ 29 है। अभी से यह सब..."

"इसमें कोई परेशान होने की बात नहीं है। बीस से तीस की उम्र के बीच में लगभग 20% लोगों को यह होता है। मगर जिनको होता है उनमें से सिर्फ़ 25% कुछ हल ढूँढते हैं इस का। बाक़ी तो अपने आप को कोसते रह जाते हैं बस।"

"साले, तुम तो PhD किए हुए हो इस टॉपिक पर!", समीर हँसा, "तुम भी हो क्या इन 20% के 25% में?"

"हाँ। हूँ यार। मगर मेरे पास तो सीधा जवाब भी है इसका।"

"तो बोलो बे। पैसे लोगे क्या सीधा जवाब मुझे देने में?"

मैंने फ़ोन निकाला और यह लिंक भेज दिया उसको WhatsApp पर

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"यार पिछले महीने मुझे भी हुआ था ऐसा ही कुछ। Google किया, वहाँ से www.misters.in पर पहुँचा। सीधे सीधे से कुछ सवाल उस website ने मुझ से पूछे। मैंने जवाब दिया। और फिर सही दवा वगेरह वहाँ से ही ऑर्डर करी। काफ़ी आसान था।"

"असर हुआ क्या दवा का?", समीर ने पूछा।

"हाँ यार, सब सही चल रहा है। सैक्स सही चलता रहे हो लाइफ़ सही रहती है यार।"

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फ़ोन पर वो लिंक समीर क्लिक कर चुका था। स्क्रीन देखते हुए बोला, "अपने ड्रामे के लिए जो बाल्टी तौलिया लाए थे वो वापस रख आओ बे।"

उठते हुए मेरी नज़र TV पर गयी। "अबे, अफ़ग़ानिस्तान जीत जाएगी क्या?!"

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