कई सवालों का जवाब देने के पहले, उनके शब्दों के बारे में सोचना पढ़ता है।

अब यही सवाल देखिए। जब एक मित्र ने यह पूछा तो सवाल तो हम समझ ही गए मगर सवाल में 'नपुंसकता' पर ध्यान केंद्रित हो गया जवाब देने के पहले।


अच्छा पहले जवाब की बात कर लें क्योंकि जवाब तो आसान है। कुछ ही रोज़ पहले हमने जिस लिंक पर क्लिक किया था और इसी तरह की दिक़्क़त का आसानी से जवाब पाया था, वो लिंक हमने इन मित्र को WhatsApp पर भेज दिया। बाद में उनसे बात भी हो गयी। उन्होंने बताया कि जो जवाब उनको हमारे दिए हुए लिंक से मिले, उनसे उनकी प्रॉब्लम तो ठीक हो गयी, और साथ ही उनकी श्रीमती जी भी काफ़ी ख़ुश है। एक लिंक पर क्लिक और प्रॉब्लम सॉल्व। वाह भाई वाह। भला हो इंटर्नेट का।


ख़ैर, प्रॉब्लम का हल मिल गया यह तो बहुत ही अच्छा लगा जान कर। मगर उनके सवाल में वो शब्द खटक गया हमको।


एक और शब्द सुना है हमने लिंग के खड़े ना होने की तकलीफ़ को ले कर। नामर्दी या नामर्दगी।


सोचिए यह दोनो शब्दों में क्या समानता है। दोनो ही यह जता रहे हैं की पुरुष तुम तभी तक हो जब तक तुम्हारा लिंग सही चल रहा है। अब आप ही बताइए क्या यही पुरुषार्थ है? क्या महापुरुषों को महापुरुष इसलिए कहा जाता है? नहीं। बिलकुल नहीं। पुरुषार्थ का तात्पर्य कर्म से है, किसी अंग-विशेष से नहीं। कोई भी अंग, भले ही वो लिंग क्यों ना हो, यह नहीं तय करता। किसी भी अंग के ठीक से ना चलने पर उसका रास्ता ढूँढ जाता है, मगर अपने समाज में कई लोग यह चाहते हैं कि इस एक अंग के सही से ना चलने पर आप विचलित हो जाएँ। यही वो लोग हैं जो इधर उधर दीवारों पर लिखवाते हैं नपुंसकता और नामर्दगी जैसे शब्द जिससे विचलित हो कर आप उनसे उलटे सीधे इलाज ख़रीद लें।


मत फँसिए ऐसे झाँसो में। मत इस्तेमाल करिए ऐसे शब्द अपने आप के लिए। अगर लिंग से जुड़ी प्रॉब्लम का हल ढूँढ रहे तो यहाँ क्लिक करिए। मगर कुछ भी हो। क्लिक करें या नहीं करें, नपुंसकता और नामर्दी जैसे शब्द कि यहाँ कोई जगह नहीं।


ख़ुश रहिए।