जब हम गए डॉक्टर चौहान के सेक्स क्लीनिक

"तो डॉक्टर साहब, ऐसा क्यों हो रहा है?", मैंने पूछा जब डॉक्टर चौहान और उनके कम्पाऊंडर ने मेरा काफ़ी निरीक्षण परीक्षण कर लिया था। मैंने उनके मशहूर सैक्स क्लीनिक में जा कर यह कहा था कि मेरा लिंग खड़ा नहीं होता। वैसे आपसे क्या छुपाना, यह तो एकदम झूठ था क्योंकि पिछले हफ़्ते में ही तीन बार बाद शानदार सैक्स हुआ था। असल में इनही डॉक्टर चौहान ने मेरे दोस्त विकास को पिछले महीने एक लाख रुपए की दावा दी थी लिंग के ढीलेपन के इलाज को ले कर।


विकास ने मुझे इस बात के कई दिन बाद बताया। और बताया भी इसलिए क्योंकि इतनी महँगी दवा से उसको कोई फ़ायदा नहीं हुआ और मैं उसको अकेला डॉक्टर दोस्त हूँ। विकास और मैं एक ही स्कूल में पढ़े थे। मैं पढ़ाई में अच्छा था इसलिए आगे चल के MBBS, PG-Urology किया और फिर अमेरिका चला गया और आगे की पढ़ाई के लिए। पर फिर वापस आ गया क्योंकि अपना देश तो अपना ही होता है। मेरी प्रैक्टिस मुंबई में है पर तब में होली के लिए छुट्टी ले कर घर आया था। विकास का वहीं एक बिज़्नेस था। होली के अगले दिन हम लोग मिले और उसने बहुत झिझकते हुए यह सब बताया। तो हमने तय किया कि मैं एक पेशंट बन कर डॉक्टर चौहान की डॉक्टरी देख कर आता हूँ।


मेरे सवाल के बाद डॉक्टर चौहान घोर चिंतन की मुद्रा में बैठे थे। मैं जवाब का इंतेज़ार कर रहा था। एक काग़ज़ पर उन्होंने कुछ लिखा फिर थोड़ा और सोचा। कोई भी उनके देख कर यह कहता की वो ध्यान में लीन हैं।


आख़िरकार वे बोले, "तुम्हारे लिंग की नसें बहुत कमज़ोर हो गयी हैं।"

मैंने पूरी मासूमियत के साथ पूछा, "ऐसा क्यों हुआ डॉक्टर साहब?"

उन्होंने एक कठोर भाव के साथ दो टूक उत्तर दिया, "क्योंकि तुमने बचपन में बहुत ग़लत काम किऐ।"

मैं इस जवाब के लिए तैयार था क्योंकि यही उन्होंने विकास को भी कहा था!

तो मैंने पूछा, "क्या आप मैस्टर्बेशन, या हस्त मैथुन की बात कर रहे हैं?"

उनके चेहरे से साफ़ था कि वो इस बेबाक़ सवाल के लिए तैयार नहीं था। उनके उपेक्षा तो यह होगी की ऐसा कहना से मैं आत्म-ग्लानि से ओतप्रोत हो जाऊँगा। यह सवाल इतने साफ़ शब्दों में आएगा यह उनके लिए बड़ा ही अजीब था।

ख़ैर, अपने आप को सम्भालते हुए उन्होंने एक घूँट पानी पिया और बोले, "हाँ, उसी से तुम्हारे लिंग की नसें कमज़ोर हो गयी हैं, और तुम्हारे लिंग में ढीलापन आ गया है।"

मैंने अगला सवाल पूछा, "तो मेरी धमनियाँ ठीक हैं, जिनसे रक्त लिंग में पहुँचता है, सिर्फ़ नसें जो रक्त को लिंग से बाहर ले जाती हैं वो कमज़ोर हैं?"

अब उनका चेहरा कुछ वैसा था जैसे उस बल्लेबाज़ का होता है जो कुलदीप की फिरकी समझ नहीं पाया, और उसके पीछे धोनी से उसे स्टम्प कर दिया।

बोले, "हाँ...मतलब नहीं...मतलब...हम्म"

मैंने आगे पूछा, "और मेरी तंत्रिकाओं में भी कोई दिक़्क़त नहीं जिनसे मेरे दिमाग़ से मेरे लिंग तक नाइट्रिक आक्सायड से मेसिज पहुँचते हैं।"


डॉक्टर चौहान अब समझ गए थे कि उनके ज्ञान की सीमाएँ उजागर हो गयी थीं।


पर उनके पास एक पास बचा था। बोले, "तो तुम डॉक्टर हो, मेरा इमतहान ले रहे हो? मगर यह याद रखो की मैं आयुर्वेद का एक्स्पर्ट हूँ, और तुम पश्चिमी सभ्यता के MBBS होगे।"


अब बेचारे डॉक्टर चौहान को कैसे पता होता कि मैंने अमेरिका में कई आयुर्वेद कॉन्फ़्रेन्स करवायीं थीं, और पूरी चरक संहिता कई बार पढ़ी थी।


मैंने कहा, "तो आयुर्वेद के एक्स्पर्ट हैं आप। फिर अब तक मेरा दोष कौनसा है। कफ़, पित्त, वात्त। यह तो आपने पता ही लगा लिया होगा?"


आख़री पासा उलटा पड़ गया।


बोले, "क्या चाहते हो?"


<मैं इस कहानी को यहाँ ही छोड़ रहा हूँ, क्योंकि मैं आप से यह जानना चाहता हूँ कि मेरा जवाब क्या होना चाहिए था। बताएँगे मुझको?>


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