आयुर्वेद: षड् रस क्या हैं?

रस शब्द के वैसे तो कई अर्थ हैं, लेकिन यहां आयुर्वेद मे रस का मतलब स्वाद से है। हम जब भी कोई चीज खाते हैं, तो सबसे पहले जीभ पर मिलने वाला टेस्ट ही रस कहलाता है।

चरक संहिता के उपदेष्टा आचार्य पुनर्वसु आत्रेय के अनुसार रस कुल छः हैं। सभी प्रकार के खाद्य पदार्थों को इन्हीं षड रस के अंतर्गत रखा गया है। प्रत्येक रस के अपने अपने गुण और प्रभाव होते हैं, जिन्हें ग्रहण किये जाने पर बॉडी में अलग अलग आवश्यक क्रियाओं को करते हैं।

षडरस युक्त भोजन श्रेष्ठ होता है, इन्हें उचित अनुपात में लेना चाहिए, इससे कम अथवा अधिक लेने पर शरीर के रोग ग्रस्त होने की सम्भावना होती है।

मधुर रस(स्वीट)

मीठे स्वाद वाली वस्तुओं का रस मधुर होता है। यह रस स्निग्ध, शीत, और, गुरु गुणों से युक्त है। मधुर रस जन्म से ही शरीर के लिए अनुकूल होता है। यह सप्तधातुओं (रस, रक्त,मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र) का पोषण करता है, ओज, आयु की वृद्धि करता है, पांचों ज्ञानेन्द्रियों और मन को प्रसन्न, निर्मल बनाता है। यह बलकारक, बालों और स्वर के लिए हितकारी होता है। मधुर रस कफ वर्धक एवं वात पित्त नाशक है।

यह बहुत सारे गुणों बाला रस है, लेकिन इस अकेले का अधिक सेवन करने से स्थूलता (फैटी नेस), आलस्य, नींद की अधिकता, भारीपन, अन्न में अरुचि आदि उत्तपन्न होने लगते है। आगे चलकर मधुमेह (डाइबिटीज), अग्नि की निर्बलता(डाइजेस्टिव डिस्टर्बेंस), प्रतिश्याय(जुखाम), कफ रोग हो सकते हैं।

अम्ल रस

खट्टे स्वाद वाली वस्तुओं का अम्ल रस होता है। अम्ल रस अन्न में रुचि बढ़ाता है, अग्नि को बढ़ाता है, तेज देता है, मन को उत्तेजित करता है, इंद्रियों को बलवान करता है, हृदय के लिए हितकारी, भोजन का पांचन करता है। वात को शांत करता है, पित्त को बढ़ाता है, कफ को पिघलाता है। यह रस लघु, उष्ण, स्निग्ध गुणों से युक्त है|

अम्ल रस का अधिक सेवन करने से यह दांतों को खट्टा करता है, शरीर को रोमांचित करता है, रक्त को दूषित कर देता है, शरीर को सुस्त करता है, पित्त को बढ़ाकर शरीर के अंगों में जलन पैदा करता है

लवण रस

लवण का मतलब नमक है, आयुर्वेद में पंच लवण यानी पांच तरह के नमक के बारे में बताया गया है। लवण रस स्निग्ध, उष्ण गुणों से युक्त है। यह अन्न पाचक, नरम बनाने वाला, अग्नि प्रदीपक(भोजन पचाने के क्षमता बढ़ाने वाला) , तीक्ष्ण, सर(मलों को बाहर की ओर धकेलने वाला) वातनाशक होता है। शरीर के अंदर के मार्गों का शोधन करता है, आहार में रुचि उत्तपन्न करता है।

 

इस रस का अधिक सेवन करने से यह पित्त को कुपित करता है, रक्त चाप (ब्लड प्रेशर) को बढ़ाता है, प्यास अधिक लगती है, संज्ञानाश(अनकॉन्शियस) करता है, पौरुष क्षमता को कम करता है, बालों को असमय श्वेत करता है, गंजापन लाता है, इसके अलावा अम्लपित्त (एसिडिटी), वातरक्त(गाउट), इन्द्रलुप्त(एलोपेसिया) आदि रोग पैदा करता है।

Salt

कटु रस

कटु रस का तात्पर्य चरपरा स्वाद(जैसे मिर्च) से है। यह रस मुख का शोधन करता है, अग्नि को बढ़ाता है, नाक से कफ और आँखों से आंसू लाता है, इंद्रियों को उत्तेजित करता है, सूजन, अभिष्यंद, उदर्द, स्नेह, पसीना, मल का नाश करता है। कृमियों(वर्म्स) को नष्ट करता है, जमे हुए रक्त को तोड़ता है, मार्गों को साफ करता है। कफ को शांत करता है, लघु, उष्ण,और रुक्ष होता है|

अधिक मात्रा में सेवन से पुरुषत्व का नाश करता है, ग्लानि उत्पन्न करता है, शरीर को निर्बल करता है, नेत्रों के सामने अंधकार लाता है, गले मे जलन तथा बुखार लाता है। वायु और अग्नि गुण की अधिकता  होने से चक्कर, जलन, कंपकंपी, चुभने जैसी पीड़ा, और वात विकार पैदा करता है।

तिक्त रस

तिक्त रस का अर्थ कडुवा स्वाद है, जैसा कि नीम की पत्तियों का होता है। तिक्त रस रुक्ष शीत, और लघु गुणों से युक्त है। यह स्वयं में अरुचिकर होते हुए भी भोजन में रूचि पैदा करता है, अतः अरोचक नाशक है, विष नाशक, कृमि नाशक, मूर्च्छा नाशक, जलन, खुजली नाशक है। प्यास को शांत करता है, बुखार दूर करता है, अग्निदीपक होता है। मेद, वसा, मज्जा, लसिका, स्वेद, मूत्र, मल, पित्त, कफ को सुखाता है।

अधिक मात्रा में लेने पर सप्त धातुओं का शोषण करता है, शरीर की स्थूलता को कम करता है, संज्ञानाश करता है, चक्कर लाता है, मुँह को सुखाता है, और वात सम्बंधित रोगों को उत्पन्न करता है।

कषाय रस

कषाय रस का अर्थ कसैला स्वाद होता है। यह रस रुक्ष, शीत और गुरु गुणों से युक्त है। यह संशमक (कुपित दोषों को उनके स्थान पर ही शांत करने वाला), संग्राहक( दोष धातु मलों को संग्रह करने वाला), रोपण(हीलिंग) करने वाला, स्तम्भक, रक्त, पित्त, कफ नाशक है।

अधिक मात्रा में इसे उपयोग करने से मुँह सुखाता है, हृदय को पीड़ित करता है, पेट मे वायु को फुलाता है, शरीर मे कालापन लाता है, पुरुषत्व और शुक्र को नष्ट करता है। पक्षवध (पैरालिसिस), अर्दित(फेसिअल पैरालिसिस) आदि रोगों को उत्तपन्न करता है।

Medically reviewed by Rishabh Verma, RP

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