याभिः क्रियाभिः जायन्ते शरीरे धातवः समाः।                                                                        सा चिकित्सा विकाराणां कर्म तत् भिषजां मतम्।।

चरक संहिता- 16/34

जिस क्रिया के द्वारा रोग का नाश हो, और जिससे शरीर को धारण करने वाले दोष, धातु, और मलों की विषमता दूर होकर आरोग्य की स्थापना होती है, उसे चिकित्सा कहते हैं, इस चिकित्सा कर्म को करने वाले को चिकित्सक कहते हैं।

आचार्य चरक ने चिकित्सा को दो भागी में बांटा है।

स्वस्थ ओर्जसकर

वह चिकित्सा जो स्वस्थ मनुष्य को स्वस्थ बनाए रखने के लिए प्रयोग होती है। इसमे आहार विहार के अच्छे नियमों के पालन के साथ साथ रसायन औषधि- अनेक तरह की हर्ब्स- अश्वगंधा, मूसली, केवांच, शिलाजीत, गोखरु, और स्वर्ण, रजत, मोती, हीरक भस्में प्रयोग की जाती हैं, ये जवानी को लम्बे समय तक बनाये रखती हैं।

आर्तस्य रोगनुत्

वह चिकित्सा जो बीमार व्यक्ति के रोग को दूर करने के लिए प्रयोग होती है। इस चिकित्सा को जानने के पहले रोग को समझना आवश्यक है, रोग होने के तरीकों के आधार पर रोग दो प्रकार के हैं।

निज रोग

जब हम आरोग्य के नियमों के विपरीत जीवन व्यतीत करते है, और मिथ्या आहार विहार करते हैं, तो इससे हमारे शरीर के दोष कुपित होते हैं और ये धातुओं को दूषित कर देते हैं जिससे रोग उत्तपन्न हो जाते हैं।

इन्हें निज रोग या लाइफ स्टाइल डिसऑर्डर भी कह सकते हैं। जैसे डाइबिटीज, ब्लड प्रेशर, मोटापा आदि।

आगंतुक रोग

जब किसी बाहरी कारण- बैक्टिरियल, वाइरल, प्रोटोजोअल, इन्फेक्शन, इंजुरी से रोग उत्तपन्न होते हैं तो इन्हें आगंतुक रोग कहते हैं। इनमें भी दोष संतुलन बिगड़ता है, लेकिन इनमें पहले बाहरी रोग उत्तपादक कारण बॉडी में प्रवेश करता है उसके बाद दोष धातु संतुलन बिगड़ता है। दोष धातु के सम अवस्था मे बने रहने का अर्थ है कि आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी है।

रोग की विभिन्न अवस्थाओं के आधार पर चिकित्सा के अनेक भेद किये गए हैं।

एकविध चिकित्सा

आचार्य सुश्रुत के अनुसार रोग उत्तपन्न करने वाले कारण का त्याग करना सबसे पहली चिकित्सा है। यानी कि जिस वजह से बीमारी हुयी है, उसे छोड़ देना चाहिए। ये तरीका रोग शुरुआती स्टेज पर और लाइफ स्टाइल डिसऑर्डर में बहुत कारगर साबित होता है। जैसे अधिक स्मोकिंग से फेफड़े या अल्कोहल से लीवर की बीमारियां हो रहीं हैं, तो इन आदतों को छोड़ देना चाहिए

द्विविध चिकित्सा

रोग कितना पुराना हो गया है, औऱ उसके लक्षणों की तीव्रता कितनी है, इसके आधार पर दो प्रकार की चिकित्सा होती है।

शमन चिकित्सा

जब रोग नया हो और रोग के लक्षण भी सरल हो ऐसी स्थिति में औषधि के प्रयोग से प्रकुपित दोष आदि को उनके स्थान पर ही शांत करके रोगमुक्ती कर दी जाती है। इसमे रोग ठीक करने वाली दवाओं के साथ साथ वात, पित्त, कफ को शांत करने के लिए लिए क्रमशः तैल, घृत, मधु(शहद) का प्रयोग भी आवश्यकतानुसार किया जाता है।

शोधन चिकित्सा

जब रोग पुराना हो गया हो, लक्षण जटिल (कॉम्प्लेक्स) हो गए हों, औषधि प्रयोग करने से सही से लाभ नहीं हो रहा हो, ऐसे में प्रकुपित दोष धातु एवं विषाक्त पदार्थों(टॉक्सिक एलिमेंट) को बॉडी से बाहर निकाल देते हैं। इसमे कई तरह के डिटॉक्सीफिकेशन प्रोसिजर किये जाते हैं, जिन्हें पंच कर्म भी कहते हैं।

वमन कर्म- कफ के कारण होने वाली 20 तरह की बीमारियों में, और हृदय से ऊपरी भाग- सीने, गले नाक, कान, गले, मस्तिष्क के रोगों में वमन लाभदायक होता है।

विरेचन- पित्त जनित 40 रोगों, हृदय से नाभि के बीच के भाग(डाइजेस्टिव सिस्टम) के समस्त रोगों में विरेचन लाभदायक है।

वस्ति- वात जनित 80 रोगों और नाभि से नीचे के भाग के रोगों, नर्वस सिस्टम की बीमारियों, जॉइंट पेन, आदि में वस्ति अत्यंत लाभदायक होती है।

इन तीन कर्मों के अलावा स्नेहन (औषधीय तेल से मालिश) स्वेदन(पसीना लाना) आदि भी प्रयोग होते हैं।

रक्त मोक्षण- बॉडी में जमा अशुद्ध विषैले रक्त को बाहर निकाल देना रक्त मोक्षण कहलाता है, अनेक तरह की स्किन डिसीज़, जॉइंट पेन, गठिया, सायटिका आदि में लाभदायक है। इसके कई तरीके लीच थैरेपी, अलाबु, हिज़ामा आदि प्रयोग होते हैं।

चिकित्सा करने के तरीकों के आधार पर इसे पुनः तीन भागों में बांटा गया है।

1- आसुरी चिकित्सा- इस चिकित्सा(सर्जरी) में अनेक तरह के यंत्र, शस्त्रों की सहायता से चीर फाड़(ऑपरेशन) करके शरीर के रोग ठीक करते हैं।

2- मानुषी चिकित्सा- जब अनेक तरह की जड़ी बूटियों, वनस्पतियों की सहायता से बनने वाली औषधियों से चिकित्सा की जाती है, तो इसे मानुषी चिकित्सा कहते हैं।

3- दैवीय चिकित्सा- इस चिकित्सा में विभिन्न धातुओं जैसे सोना, चांदी, ताम्बा, लोहा, पारद आदि की भस्मों की सहायता से रोग निवारण करते हैं।

रोग के अधिष्ठान के आधार पर पुनः चिकित्सा को शारिरिक, एवं मानसिक चिकित्सा में बांटा गया है।

आयुर्वेद में चिकित्सा एक बहुत ही वृहद विषय है, यहां पर इसे सरल रूप में समझाने का प्रयास किया गया है।

 

अगर आप किसी तरह की चिकित्सा के अभिलाषी हैं, तो आपको आयुर्वेद विशेषज्ञ से सलाह लेकर इसे शुरू करना चाहिए।

Medically reviewed by Rishabh Verma, RP