गोक्षुर या गोखरू एक पौधा है, जिसका आयुर्वेद में बड़ा महत्व है। इसका बोटैनिकल नाम ट्रिब्युलस टेरेस्ट्रिस (Tribulus Terrestris) है। गोक्षुर या गोखरू का इस्तेमाल कई बीमारियों और डिसऑर्डर्स को ठीक करने में किया जाता है। इस पौधे की जड़ और इसका फल दोनों ही आयुर्वेद की दृष्टि से फायदेमंद और उपयोगी हैं इसलिए इसका इस्तेमाल भी कई तरह से किया जाता है।


गोखरू का सबसे ज्यादा इस्तेमाल सेक्सुअल समस्याओं जैसे- नपुंसकता, इरेक्टाइल डिस्फंक्शन, स्वप्नदोष (नाइट फॉल) और ज्यादा हस्तमैथुन के बाद होने वाली समस्याओं को ठीक करने में किया जाता है। इन सभी सेक्सुअल समस्याओं के कई कारण हो सकते हैं, जैसे- नींद की कमी, तनाव, धमनियों में ब्लॉकेज, लिंग तक पर्याप्त खून न पहुंचना और मेटबॉलिक समस्याएं जैसे- हाई कोलेस्ट्रॉल, मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज आदि। आयुर्वेद के अनुसार ये सभी बीमारियां और समस्याएं 3 दोषों के कारण उत्पन्न होती हैं (वात, पित्त और कफ), खासकर वात दोष के कारण।

गोक्षुर या गोखरू के सेवन से वात को संतुलित करने में मदद मिलती है। आयुर्वेद के अनुसार गोखरू में वृष्य (वीर्य और पौरुष को बढ़ाने वाला), बल्य (शक्ति बढ़ाने वाला), पुष्टिकर (क्षमता बढ़ाने वाला), अग्निदीपक (पाचन और मेटाबॉलिज्म बढ़ाने वाला) आदि गुण भी होते हैं, जिसके कारण ये कई तरह की सेक्स समस्याओं के साथ-साथ गंभीर बीमारियों को दूर करने में भी मददगार होता है।

गोखरू के चूर्ण और तिल के चूर्ण को समान मात्रा में शहद में मिलाकर बकरी के दूध के साथ लेने से अधिक हस्तमैथुन करने के कारण होने वाली सेक्स संबंधी समस्याओं को ठीक किया जा सकता है। इसी तरह गोखरू को कई तरह के घरेलू नुस्खों के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है।


सेक्स समस्याओं के अलावा गोखरू या गोक्षुर किडनी और यूरिन संबंधी समस्याओं जैसे- किडनी में पथरी, यूरिन रुकने, पेशाब में जलन, रुक-रुक कर पेशाब आने आदि स्थितियों में भी प्रयोग किया जाता है। ये सभी समस्याएं वात और कफ दोष के कारण उत्पन्न होती हैं। इसके कारण व्यक्ति को पेशाब करते समय दर्द और बेचैनी महसूस होती है। कई बार चक्कर आने, उल्टी, एसिडिटी और अपच जैसे लक्षण भी देखने को मिलते हैं। गोक्षुर में मूत्रवर्धक गुण होते हैं और ये वात को संतुलित करता है, इसलिए इसके प्रयोग से मूत्र और किडनी से संबंधी समस्याएं दूर होती हैं। गोक्षुर के सेवन से पेशाब की मात्रा और फ्लो दोनों बढ़ते हैं, जिससे किडनी की पथरी धीरे-धीरे बाहर निकल जाती है और मूत्र या मूत्रनली (यूरिनरी ट्रैक्ट) से जुड़ी समस्याएं भी ठीक हो जाती हैं। यही कारण है कि गोखरू को किडनी की समस्याओं में बहुत फायदेमंद आयुर्वेदिक औषधि माना जाता है।


मेटाबॉलिक समस्याएं जैसे अपच, मोटापा, हाई कोलेस्ट्रॉल और अन्य बीमारियां जैसे- डायबिटीज, हाइपरटेंशन (हाई ब्लड प्रेशर) आदि मुख्यतः वात और कफ दोष के कारण होती हैं। आयुर्वेद के अनुसार खानपान में गड़बड़ी के कारण जब खाना ठीक से नहीं पचता है और पेट में बिना पचा खाना रह जाता है, तो शरीर में अमा (टॉक्सिन्स) जमा होने लगते हैं, जिनके कारण ही ये बीमारियां और स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। गोखरू में अग्निदीपक गुण होता है, जो अपच और मेटाबॉलिज्म को सही करता है, इसलिए इसके सेवन से ये समस्याएं दूर हो जाती हैं, पाचन बेहतर हो जाता है और रोग ठीक होने लगता है।

इसके अलावा गर्भपात के बाद गर्भाशय की सफाई के लिए भी गोक्षुर का प्रयोग किया जाता है। ये गर्भ की गंदगी को निकाल देता है।


ये कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिनमें गोखरू या गोक्षुर का प्रयोग फायदेमंद पाया गया है। इसके अलावा भी कई समस्याओं में आयुर्वेदिक चिकित्सक गोक्षुर को अन्य जड़ी-बूटियों के साथ मिलाकर देते हैं।

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