शतावरी, आयुर्वेद में उपयोग की जाने वाली बहुत ही आवश्यक जड़ी बूटियों में से एक है। इसका उपयोग आमतौर पर महिला प्रजनन स्वास्थ्य के लिए किया जाता है जैसे गर्भ धारण में, गर्भपात को रोकने के लिए और कामेच्छा में सुधार करने के लिए । संस्कृत में, शतावरी नाम का अर्थ है "एक सौ जड़ें" जिसे दूसरे अर्थ में कहा जा सकता है "जिनके एक सौ पति हैं"। शतावरी नाम ही एक कायाकल्प टॉनिक का सुझाव देता है, जिसका अर्थ है कि यह किसी भी व्यक्ति के अच्छे स्वास्थ्य या सामान्य कल्याण को विकसित करने और बनाए रखने में मदद करता है।

शतावरी के पारंपरिक उपयोग का उल्लेख आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों जैसे “चरक संहिता” में पहले ही किया जा चुका है, जो आमतौर पर वर्णन करता है कि इसका उपयोग मिर्गी जैसी कुछ स्थितियों में मस्तिष्क टॉनिक के रूप में किया जाता है । यह वात विकारों, हृदय संबंधी विकारों और उच्च रक्तचाप का भी प्रबंधन करता है।

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शतावरी को कई प्रकार की स्वास्थ्य सम्बंधित परेशानियों में काफी लाभकारी पाया गया है। साथ ही इसका उपयोग बड़े पैमाने पर पुरुष यौन समस्याओं जैसे कि स्तंभन दोष, ऑलिगोस्पर्मिया, शुक्राणुजन्य अनियमितताओं और दर्दनाक संभोग में किया जाता है। सभी यौन समस्याओं को आमतौर पर वात दोष द्वारा नियंत्रित किया जाता है। वात दोष में किसी भी प्रकार का असंतुलन किसी भी यौन समस्या को जन्म दे सकता है। क्यूंकि शतावरी वात दोष को सामान्य बनाए रखने में मदद करती है, इसलिए इसे सभी यौन विकारों में बहुत फायदेमंद माना जाता है।

शतावरी के विभिन्न नामकरण

शतावरी को दुनिया भर में कई नामों से जाना जाता है, जैसे शतावरी, बहुसुता और शतमूली। इसका वानस्पतिक नाम “एस्परैगस रेसमोसस” है। शतावरी को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे कि संस्कृत में सतावरी, हिंदी में सतावरी , शतावर, सतमुली, अंग्रेजी में जंगली शतावरी, बंगाली में शतमुली, मराठी में शतावरी या शतमुली, गुजराती में सतावरी, तेलगु में तोला – गडडालू  या  पिल्ली - गडडालू । तमिल में शिमिशदावरी या इनली - चेदि , मलयालम में चटावली, कन्नड़ में मज्जिगेगड्डे या अहेरुबाली, मध्यप्रदेश में नरबोध या अटमूली, कुमाऊं में कायरुवा, राजस्थान में नरकोण्टो या सतावर।

शतावरी की अन्य अवधारणाएँ

शतावरी पूरे भारत में आसानी से पाई जा सकती है। विशेष रूप से यह भारत के उत्तरी क्षेत्रों में अधिक उपलब्ध है।

शतावरी का स्टेम कई सींगों से भरा है। इसकी शाखाएँ आकार में कुछ त्रिभुजाकार होती हैं जो छूने में थोड़ी चिपचिपी या तैलीय होती हैं। इसकी पत्तियाँ लगभग ½ - 1 इंच बड़ी होती हैं और आमतौर पर लगभग 2-6 पत्तियों के एक समूह में देखी जाती हैं। इसके फूल बहुत सुंदर, सफेद रंग के होते हैं और अच्छी खुशबू से भरे होते हैं और आम तौर पर गुच्छा में पाए जाते हैं। इसके फल आकार में छोटे और गोल होते हैं जिन्हें पकने पर लाल रंग में देखा जाता है। इन फलों  के अंदर 1-2 बीज भी होते हैं।

शतावरी के आयुर्वेदिक गुण स्वास्थ्य समस्याओं के प्रबंधन में इसे और अधिक कुशल बनाते हैं। शतवारी प्रकृति में गुरु (भारी) और स्निग्ध (तैलीय) है। यह गुण इसे एक संपूर्ण भोजन बनाता है जो शरीर में परिपूर्णता प्रदान करती है और आंतरिक या बाहरी सूखेपन को दूर करने के प्रबंधन में मदद करती है। यह स्वाद में मधुर (मीठा) और तिक्त (कड़वा) है। स्वाद के बाद यह मधुर (मीठा) है। यह अपनी क्षमता में शीत (ठंडा) है। शतावरी तीनों दोषों को सामान्य बनाए रखने में मदद करती है, विशेष रूप से वात और पित्त दोष।

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कुल मिलाकर, शतावरी आयुर्वेद में आवश्यक जड़ी बूटियों में से एक है जो कायाकल्प और कामोत्तेजक दोनों के रूप में काम करती है। इसका मतलब है कि शतावरी समग्र स्वास्थ्य का प्रबंधन करने में मदद करती है और साथ ही किसी भी व्यक्ति के यौन स्वास्थ्य को स्वस्थ बनाए रखती है।

Medically reviewed by Rishabh Verma, RP