अश्वगंधा, सोलेनेसी फेमिली का  पौधा है। इसका बोटैनिकल नाम Withania somnifera (विथैनिया सोमेनीफेरा) है, अंग्रजी में इसे  विंटर चेरी भी कहते हैं। इसकी प्रभाव क्षमता को देखते हुये इसे किंग ऑफ आयुर्वेदिक हर्ब्स, इंडियन जिनसेंग भी कहा जाता है। इसका उपयोग प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद, यूनानी, सिद्धा के साथ साथ अन्य देशों जैसे पारम्परिक अफ्रीकी मेडिसिन में भी होता आया है।

इसका क्षुप (shrub) 30 से 150 cm तक लंबा होता है, इसकी जड़ें हल्की धूसर सफेद रंग की होतीं हैं, ताज़ी अवस्था में इनसे अश्व(घोड़े) के समान स्मैल आती है, इसीलिए इसे अश्वगंधा कहते हैं | भारत मे अश्वगंधा पश्चिमोत्तर भारत, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब और समुद्र तल से 5000 फिट की ऊंचाई तक पाया जाता है।

अश्वगंधा अनिल श्लेष्म श्वित्र शोथ क्षयापहा ।                                                                बल्या रसायनी तिक्ता कषायोष्णा अतिशुक्रला ।।

भाव प्रकाश निघंटु श्लोक- 190 पेज- 560

अश्वगंधा उष्ण वीर्य, तिक्त और कषाय रस युक्त होती है। यह वात, कफ, श्वित्र, शोथ और क्षय को नष्ट करती है। अश्वगंधा बल्य, रसायन, और अति शुक्रल होती है।

(उष्ण वीर्य- गर्म तासीर, श्वित्र- ल्युकोडर्मा(सफेद दाग),शोथ- इंफ्लामेशन, क्षय- क्षय का अर्थ शरीर की सभी धातुओं का बहुत कम, क्षीण हो जाना है। क्षय रोग- ट्यूबरक्लोसिस को कहते हैं, बल्य- शरीर के बल को बढ़ाने वाली, रसायन- जिसके सेवन से जवानी बरकरार रहे, अति शुक्रल- शरीर मे टेस्टोस्टेरोन को बढ़ावा देती है, साथ ही स्पर्म क्वालिटी, और काउंट को इनक्रीस करती है।)

लैबोरेटरी में एनालिसिस से सामने आया है कि, असगंध की जड़ में लगभग 35 तरह के सक्रिय रसायन पाए जाते हैं। इनमें एल्कलॉइड, स्टेरॉइडल लैक्टोन्स, सैपोनिन्स मुख्य हैं। संयुक्त रूप से इन्हें विथनॉलॉइड या सोमनिफेरीन्स भी कहते हैं। अश्वगंधा के ह्यूमन बॉडी पर प्रभावों को समझने के लिए की गयी रिसर्च, और स्टडी में इसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंजीओलायटिक, मेमोरी वर्धक, एन्टी पार्किन्सन, एंटीवेनम, एन्टी इन्फ्लामेट्री, एन्टी ट्यूमर एक्टिविटी देखी गयी हैं। इसके अलावा इम्मुनोमोडूलेशन, कार्डियोवस्कुलर प्रोटेक्शन, सेक्सुअल विहेवियर एनहेंसर के गुण भी अश्वगंधा में पाए गये हैं।

उपयोग

अश्वगंधा का औषधि के रूप में उपयोग सदियों से होता रहा है। इसकी पत्तियों, फल, और जड़ का उपयोग सर्वाधिक होता है।

सामान्य रूप से अश्वगंधा का रूट एक्सट्रेक्ट 300 से 500 mg की मात्रा में दिन में एक से दो बार तक प्रयोग किया जाता है।

अश्वगंधा पाउडर की मात्रा 3 से 6 ग्राम तक प्रयोग होती है, एवं अश्वगंधा क्षार 1 से 2 ग्राम तक ले सकते हैं।

इसका उपयोग अर्थराइटिस, मानसिक तनाव, बाइपोलर डिसऑर्डर, ADHD(अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर), अनिद्रा, ट्यूमर, ट्यूबरक्लोसिस, अस्थमा, लियूकोडर्मा, मासिक धर्म प्रॉब्लम, पार्किन्सन डिजीज, हाइपो थायरोइड्सम, लिवर डिजीज, कैंसर, सीजोफ्रेनिया, में किया जाता है। इसके अलावा अश्वगंधा का प्रयोग ब्लड सुगर और बॉडी फैट को कम करने में भी किया जाता है।

अश्वगंधा को एडाप्टोजेन के रूप में प्रयोग करने से माइंड को डेली लाइफ के स्ट्रैस से छुटकारा मिलता है, और यह टॉनिक का काम भी करता है, और एनर्जी लेवल बढ़ाता है। कुछ लोग अश्वगंधा को अपनी थिंकिंग एबिलिटी को बढ़ाने के लिए, दर्द और सूजन को कम करने के लिए, एवं बढ़ती उम्र के प्रभाव को कम करने के लिए भी प्रयोग करते हैं।

इसका उपयोग पुरूष और महिलाओं में सेक्सुअल डिज़ायर को बढ़ाने के लिए, एवं फर्टिलिटी प्रॉब्लम को दूर करने में भी होता है| टेस्टोस्टेरॉन की कमी से जूझ रहे पुरुषों के लिए अश्वगंधा अत्यंत महत्वपूर्ण औषधि है।

Medically reviewed by Rishabh Verma, RP

 

अश्वगंधा का यूज़ कमर दर्द, घाव को ठीक करने एवं आधे हिस्से का लकवा ( हेमिप्लेजिया) में भी होता है।

अश्वगंधा कैसे काम करता है?

अश्वगंधा के काम करने के तरीकों पर अभी पूरे तौर पर रिसर्च नहीं हुयी हैं, फिर भी इसमे पाए जाने वाले तत्व ब्रेन को शांत करते हैं, स्वीलिंग को कम करते हैं, ब्लड प्रेशर, और ब्लड ग्लूकोज को कम करते हैं और इम्यून सिस्टम को बूस्ट करते हैं।