आयुर्वेद के प्रमुख ग्रन्थ भाव प्रकाश में दिए गए वर्णन के अनुसार-

कपिकच्छू र्भृशं वृष्या मधुरा बृंहणी गुरूः।                                                                               तिक्ता वातहरी बल्या कफ पित्तास्र नाशिनी।                                                                         तद्वीजं वातशमनं स्मृतं वाजीकरं परम्।।

भाव प्रकाश नि. 130,131

कौंच अत्यंत वृष्य, मधुर, तथा तिक्त रस युक्त, बृहण, गुरु, वात नाशक, बलकारक, तथा कफ पित्त एवं रक्त दोष नाशक है। इसके बीज वातशामक, अत्यंत वाजीकारक हैं।

(अत्यंत वृष्य (वाजीकारक)- सेक्स करने की सामर्थ्य को बहुत ज्यादा बढ़ाता है। बृहण - शरीर का दुबलापन दूर करके हष्ट पुष्ट बनाता है। रक्त दोष- रक्त के टॉक्सिन को दूर करके प्यूरीफाई करता है। वात नाशक- शरीर में वात की अधिकता से होने वाली प्रॉब्लम्स को दूर करता है।)

कौंच एक सेम की तरह लता जैसे आकार वाला लेग्यूमिनोसी कुल का पौधा है, जिसका बोटेनिकल नाम म्युकुना प्रुरिटा (Mucuna prurita) है। इसके अलावा इसे कपिकच्छू, मर्कटी, केवांच, आत्मगुप्ता और काउहेज(cowhage) के नाम से भी जानते हैं।

केवांच की लता समस्त भारत के उष्ण क्षेत्रों में पायी जाती है, इसके अलावा यह दक्षिणी फ्लोरिडा, बहामास में भी मिलती है।

इसकी लता वर्षायु और रोम युक्त, पत्र 6 से 9 इंच लंबे और तीन पत्तियों वाले होते हैं। फूल 1.5 इंच लम्बे और नीले, बैगनी रंग के होते हैं। फलियां 2 से 4 इंच लम्बी होती हैं, इनके बाहरी भाग पर घने रोम होते हैं, जिनका कि स्पर्श होते ही बहुत तेज खुजली, जलन, और शोथ होने लगता है। प्रत्येक फली में 5-6 चमकीले बीज होते हैं इन्हें ही कौंच बीज कहते हैं।

मुख्य रूप से केवांच के बीज, जड़, पत्ती, तथा फल रोम का चूर्ण या एक्सट्रेस्ट के रूप में उपयोग किया जाता है।

विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में कौंच बीज  का प्रयोग अनेक रोगों की चिकित्सा में किया जाता है।

इसका प्रयोग पार्किन्सन डिजीज में करते हैं, इसके साथ ही इरेक्टाइल डिस्फंक्शन, शुक्राणुओं की कमी, नपुंसकता, एंग्जायटी, अर्थराइटिस, वर्म इंफेस्टेशन में भी कौंच बीज का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा एक विशेष स्थिति हाइपर प्रोलेक्टिनेमिया, जिसमे कि शरीर मे प्रोलेक्टिन नामक हार्मोन का स्तर सामान्य से काफी अधिक हो जाता है, इसके इलाज में भी केवांच उपयोगी है। यह विष हरण की क्षमता भी रखता है, जिस कारण इसका प्रयोग सर्प दंश में भी करते हैं। साथ ही आर्सेनिक पॉइसिनिंग को दूर करने में भी यह उपयोगी है |

कुछ लोग जॉइंट पेन, और मसल पेन को ठीक करने के लिये, केवांच को सीधे स्किन पर भी अप्लाई करते हैं। ऐसा करने से स्किन का ब्लड फ्लो बढ़ जाता है और दर्द  ठीक हो जाता है | इसका प्रयोग पैरालिसिस और स्कोर्पियन स्टिंग में भी लाभदायक  होता है।

Kaunch beej for joint pain

कौंच कैसे कार्य करता है?

रासायनिक रूप से एनालिसिस करने पर सामने आया है कि कौंच में लिवोडोपा  (L-dopa) नामक तत्व पाया जाता है। बॉडी के अंदर यह तत्व ब्रेन में पहुंचकर डोपामाइन में बदल जाता है, डोपामाइन एक अत्यंत महत्वपूर्ण केमिकल है, जो मनुष्य के दिमाग के कार्य करने की क्षमता, मूड आदि को प्रभावित करता है |  पार्किन्सन डिजीज में रोगी के ब्रेन में डोपामाइन की कमी हो जाती है, जिसके कारण रोग के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। ऐसे में कौंच बीज का प्रयोग लाभकारी होता है, इसमे पाए जाने वाले केमिकल्स इसे पार्किन्सन डिजीज की हर्बल मेडिसिन बनाते हैं।

इसके अलावा कौंच बीज में ह्यूमिडिटी 9.1, प्रोटीन 25, मिनरल्स 6.75 परसेंट होते हैं।

Medically reviewed by Rishabh Verma, RP