प्रकृति शब्द का अर्थ किसी भी व्यक्ति विशेष के शरीर में त्रिदोष के नेचुरल अनुपात से है। यह अनुपात गर्भाधान के समय माता पिता के आर्तव एवं शुक्र में उपस्थित दोषों(वात,पित्त,कफ) की प्रबलता या क्षीणता के आधार पर निर्धारित होता है, और उसी के अनुसार गर्भ की प्रकृति बनती है। आगे चलकर जन्म के बाद यही प्रकृति जीवन भर मनुष्य में प्रभावी रहती है।
व्यक्ति का शारीरिक आकार प्रकार, खान पान, पसंद नापसंद और कुछ खास तरह की बीमारियों के प्रति उसकी संवेदनशीलता भी इस प्रकृति से ही प्रभावित होती है। जैसे कि कुछ लोग बहुत तीखा भोजन या कुछ लोग मीठा ज्यादा पसंद करते हैं, इसी तरह कुछ लोगों को गर्मियों का तो कुछ लोगों को ठंड का मौसम अच्छा लगता है, ये सारी बातें प्रकृति से ही प्रभावित होती हैं।
आचार्य सुश्रुत के अनुसार प्रकृति का निर्धारण शुक्र शोणित (मेल फीमेल गैमीट) के मिलने के समय ही हो जाता है और मृत्यु तक वैसा ही रहता है। उदाहरण के लिए गर्भाधान के समय यदि वात दोष, कफ और पित्त की अपेक्षा प्रबल है तो, गर्भ वातज प्रकृति का हो जाएगा और इस का प्रभाव उसकी एनाटोमी, फिजियोलॉजी, सायकोलोजी, और इम्युनिटी पर पड़ेगा इन सभी में वात दोष के लक्षण रहेंगे। अपने शरीर की प्रकृति को जानकर आप अपने स्वास्थ्य को मेंटेन रख सकते हैं, और यह आपको बीमारियों से लड़ने में भी मदद करता है।
प्रकृति के प्रकार
प्रकृति सात प्रकार की होतीं हैं।
1- वातज
2- पित्तज
3- कफज
4- वात-कफज
5- पित्त-कफज
6- वात-पित्तज
7- वात-पित्त-कफज(समदोषज)
वात दोष की अधिकता से हीनप्रकृति, पित्त दोष की अधिकता से मध्यम प्रकृति, कफ दोष की अधिकता से उत्तम प्रकृति बनती है।
कफ प्रकृति को सबसे अच्छा माना जाता है, साथ ही तीनों दोषों की समानता से बनी प्रकृति सर्वश्रेष्ठ होती है। दो दो दोषों के मिश्रण से बनी प्रकृति को द्विदोषज कहते हैं यह निन्दनीय होती है।
1- वातज प्रकृति
वातज प्रकृति के मनुष्यों में वात के गुणों के अनुरूप ही लक्षण मिलते हैं, इनका शरीर रूखा, लम्बा होता है, आवाज भी तेज और अस्पष्ट होती है। वातज मनुष्य सतर्क रहते हैं, इनकी गतिविधियां बहुत जल्दबाजी वाली होती है, किसी भी काम को बहुत जल्दी शुरू करते हैं और जल्द ही इनका मन उचट जाता है। अधिक बोलते हैं, किसी भी बात को जल्दी याद करके जल्दी ही भूल जाते हैं। बहुत जल्दी क्रोधित या भयभीत हो जाते हैं, कामेक्षा भी कम होती है |
शीत गुण के कारण ये ठंड के प्रति संवेदनशील होते हैं, बहुत जल्दी जुखाम हो जाता है, कंपकपी, या मसल्स क्रेम्प भी होते हैं। इनकी बॉडी में ड्राई नेस के कारण स्किन में क्रेक बन जाते है, और चलते फिरते समय जॉइंट्स में कट कट की आवाज आती है। इन्हें यात्रा करना और स्निग्ध, मधुर, अम्ल, लवण रस वाले खाद्य पदार्थ बहुत पसंद आते है,और इस तरह का भोजन इनके लिए अनुकूल भी होता है। इनका बल और आयुष्य भी कम होता है।
2- पित्तज प्रकृति
पित्तज प्रकृति के मनुष्य गर्मी बर्दाश्त नहीं कर सकते, इनका बॉडी कलर फेयर होता है, और बॉडी में कहीं कहीं रेड, ब्लेक स्पॉट, तिल होते हैं, इन्हें भूख प्यास भी बहुत तेज लगती है। इन्हें पसीना अधिक और दुर्गंध युक्त आता है। इनके नाखून, जीभ, ओंठ, और हाथ पैरों की तलों का रंग ताम्र वर्ण(कॉपर कलर) का होता है।
इनके बाल जल्दी सफेद हो जाते हैं और बाल झड़ने की समस्या भी होती है। पित्तज प्रकृति के मनुष्यों में बल और कामेक्षा मध्यम होती है, और इनकी आयु भी मध्यम होती है। ये अत्यधिक मेधावी(जीनियस), बुद्धिमान, साहसी,अच्छे वक्ता और तेजस्वी होते हैं। ये स्वादिष्ट, तिक्त, कषाय और शीतल खाद्य पदार्थ पसन्द करते हैं। ये साफ सुथरे रहना और तरह तरह के पर्सनालिटी ग्रूमिंग प्रोडक्ट इस्तेमाल करना पसन्द करते हैं।
3- कफज प्रकृति
कफज प्रकृति वाले मनुष्य सुंदर सुगठित शरीर वाले एवं स्थिर व्यक्तित्व वाले होते हैं, इनका बॉडी कलर भी फेयर होता है, बाल घने और काले होते हैं। माथा छाती और भुजाएं विशाल होती हैं, आँखों मे सफेद और काला भाग अलग अलग और निर्मल नेत्र होते हैं। इनकी शारीरिक गतिविधियां कुछ स्लो होती हैं, स्किन नर्म और चिकनी होती है, इन्हें भूख, प्यास, कम लगती है, पसीना भी कम आता है। कफज प्रकृति वाले लोगों की बॉडी के जॉइंट्स बहुत मजबूती से जुड़े होते हैं, आवाज गहरी होती है। इनके अंदर बल और कामेक्षा उत्तम होती है, स्वास्थ्य अच्छा होता है, और इनकी आयु भी लंबी होती है। ये सत्य बोलने वाले धैर्यवान होते हैं, तथा कटु, तिक्त, कषाय, और उष्ण खाद्य पदार्थों को पसन्द करते हैं|
दो दोषों के कारण बनने वाली प्रकृति में दोनो दोषों के लक्षण मिलते हैं, और ये रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं |
तीनों दोषों के समान होने पर समदोषज प्रकृति बनती है। यह सबसे अच्छी होती है, साथ ही यह बहुत कम लोगों में पायी जाती है, समदोष वाले मनुष्य की इम्युनिटी सबसे अच्छी होती है, इनके अंदर तीनों दोष बराबर होते हैं।
अपनी प्रकृति को पहचान कर आपको स्वस्थ और निरोगी जीवन जीने में मदद मिलती है, यानि कि आपकी जो प्रकृति है, वह दोष आपके अंदर सर्वाधिक क्रियाशील रहता है, जब भी आप गलत खान पान या लाइफ स्टाइल अपनाते हैं, आपकी प्रकृति वाला दोष कुपित हो जाता है, और रोग उत्तपन्न करने लगता है। इसे पहचान कर आप इसे शांत करने वाले आहार या जीवन शैली को अपनाकर अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं।