ऊपर काले घने बदल, नीचे हरे लह-लहाते मैदान और ठंडी ठंडी हवा !! अब ऐसे में एक आम भारीतये जो सुकून महसूस करता है उसमे कमुखता बढ़ना तो थोड़ा स्वाभाविक ही लगता है। हमारी कृषि प्रधान संस्कृति में सावन एक अलग ही महत्व रखता है, और उत्तरी भारत में तो सावन से पहले जो सूर्य देव का कहर बरसता है उसके बाद बारिश की बात से ही राहत मिलने लगती है।

हालाँकि इसका यह मतलब नहीं है कि लोग बारिशों में ज़्यादा सेक्स करते ही करते हैं, लेकिन हाँ अगर छत पे पूरे घर के साथ गद्दा बिछा के रात काटी गयी हो, या फिर अपने प्रिये के साथ कमरे में अकेले हों तो सेक्स करना कब आसान हे या मुश्किल आप खुद ही समझ सकते हैं।

सावन वैसे भी बहुत सारे त्यौहार लेके आता है जिसमे अक्सर हम लोग काम से वक्त निकाल के अपने घरवालों के साथ रहते हैं। टेंशन काम होता है और टाइम थोड़ा ज़्यादा, बस एहि तो चाहिए हमारे मस्तिष्क को, सुकून और ख़ुशी, बॉडी के यह इशारा देने के लिए की यह प्रजनन का सही समय है। यह बात शायद थोड़ी अजीब सी लगी होगी, मैं आपको इस के बारे में बताता हूँ। देखिये, कोई भी जानवर सेक्स तभी करता है जब उसका पेट भरा होता है और जान का खतरा नहीं होता, ऐसी अवस्था में हॉर्मोन्स कुछ अलग तरह के होते हैं और कमुखता वाले हॉर्मोन्स अब प्रबल हो पाते हैं। यही हमारे साथ भी होता है जब हम छुट्टी पे होते हैं, या सुकून में होते हैं, बिना टेंशन के हमारे होर्मोन्स हमें कामुख बनाते हैं और हम सेक्स के बारे में सोचते और करते हैं।  मौसम भी खुशगवार होता है इसलिए शायद सेक्स की संभावना बढ़ जाती है।