मानव सभ्यता के शुरुआत से ही इंसान के दो सबसे बड़े शत्रु के रूप में रोग और मृत्यु हमेशा साथ रहे हैं। इनपर विजय पाने की चाहत में अनेकानेक चिकित्सा पद्धतियों का जन्म हुआ। इनमें प्राचीनतम विज्ञान के रूप में आयुर्वेद हमारे बीच मौजूद है।
मनुष्य की अनेक चाहतें हैं और इन्हें पूरा करने,अनुभव करने का माध्यम हमारा जीवन है। इस जीवन को स्वस्थ रहते हुए सुखपूर्वक कैसे व्यतीत किया जाये एवं लाइफ को संपूर्णता के साथ समझने का विज्ञान आयुर्वेद है।
महर्षि चरक ने कहा है,
'आयुर्वेदयति इति आयुर्वेदः'
यानि कि जो आयु (लाइफ) का ज्ञान कराता है, वह आयुर्वेद है। दुनिया की अन्य चिकित्सा पद्धतियों की तरह आयुर्वेद केवल बीमारियों को ठीक करने वाला चिकित्सा विज्ञान भर नहीं है, बल्कि यह पहले हमें स्वस्थ एवं निरोग रहना सिखाता है, उसके बाद भी अगर कोई रोग हो जाये तो उसे कैसे ठीक किया जाए यह बताता है।
आयुर्वेद की उत्त्पत्ति
वैसे तो आयुर्वेद का ज्ञान नित्य और अपौरुषेय* है, लेकिन इसका सर्वप्रथम वर्णन मानव सभ्यता के सबसे प्राचीन धरोहर वेदों में मिलता है। चारों वेदों में इसका पर्याप्त विवरण है, अथर्ववेद मे आयुर्वेद के सर्वाधिक सूत्र मिलते हैं, कुछ विद्वान तो इसे अथर्ववेद का उपवेद भी मानते हैं।
वेद के पश्चात आयुर्वेद का ज्ञान महान ऋषियों चरक, सुश्रुत, वाग्भट्ट आदि के द्वारा लिखित ग्रंथों जिन्हें संहिता ग्रंथ कहते हैं, से प्राप्त होता है। इन ग्रंथों के अनुसार आयुर्वेद का ज्ञान सर्वप्रथम ब्रह्मा के द्वारा अन्य देवों को फिर आगे ऋषियों को दिया गया। पहले यह ज्ञान गुरु शिष्य परंपरा के माध्यम से मौखिक रूप से प्रवाहित होता रहा फिर मानव जाति के कल्याण के लिए इसे लिखित रूप में सुरक्षित किया गया।
आयुर्वेद का उद्देश्य
आचार्य चरक के अनुसार
"स्वस्थस्य स्वास्थ रक्षणं
आतुरस्य विकार प्रशमनं च"
स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और आतुर यानी बीमार व्यक्ति को रोग मुक्त करना ही आयुर्वेद का उद्देश्य है।
आयुर्वेद के भाग
आयुर्वेद को कुल आठ मुख्य भागों में बांटा गया है, जिन्हें अष्टांग आयुर्वेद कहते हैं ये निम्न हैं।
1- काय चिकित्सा(मेडिसिन)
इसमें सम्पूर्ण शरीर की चिकित्सा आती है। बॉडी में होने वाले सभी अंगों की बीमारियों और उनकी चिकित्सा का अध्ययन इस भाग में किया जाता है।
2- बालरोग (पीडियाट्रिक्स)
इसे कौमारभृत्य भी कहा जाता है। आयुर्वेद के इस अंग में जन्म से लेकर बड़े होने तक बच्चों के खान-पान और रोगों तथा उसकी चिकित्सा के बारे में बताया जाता है।
3- ग्रह चिकित्सा (सायकोलोजी)
इसके अंतर्गत मनुष्य के स्वास्थ्य पर अभौतिक जगत और ग्रहों के प्रभाव का अध्ययन एवं इनके कारण आने वाली समस्याओं एवं रोगों को दूर करने के बारे में बताया जाता है।
4- शालाक्य चिकित्सा (ई एन टी)
इसमें गले के ऊपर के भाग के अंगों नाक, कान, आंख, गले आदि में होने वाली डिसीज़ और उनके इलाज के बारे में अध्ययन किया जाता है
5- शल्य चिकित्सा (सर्जरी)
बॉडी के अंदर के किसी हानिकारक पदार्थ को तेज औजारों की सहायता से बाहर निकालने, या किसी अंग में चीर फाड़ करके उसे स्वस्थ बनाने के ज्ञान को सर्जरी कहते हैं
6- विष चिकित्सा (टॉक्सिकोलॉजी)
आयुर्वेद के इस भाग में विभिन्न प्रकार के एनिमल और मिनरल पॉइज़न और उनका ह्यूमन बॉडी पर पड़ने वाले इफ़ेक्ट के बारे में स्टडी की जाती है।
7- रसायन तंत्र
'यद् जरा व्याधि नाशनं तद् रसायनं' जो वृद्धावस्था और व्याधियों को दूर करे वह रसायन है। यानी कि आयुर्वेद का वह भाग जिसमे लम्बे समय तक युवावस्था को बनाये रखने के तरीके हों उसे रसायन कहते हैं।
8- वाजीकरण(सेक्सोलाजी)
जो पुरुष किन्हीं कारणों से स्त्री प्रसंग(सेक्सुअल लाइफ) में कमजोर होते हैं, उन्हें इसकी मदद से समर्थ बनाया जाता है।
आयुर्वेद की विशेषता
- आयुर्वेद में प्रयोग होने वाली दवाएं नेचुरल चीजों जड़ीबूटियों, पेड़-पौधों, मिनरल्स आदि से बनायी जातीं हैं, इसीलिए इनका बॉडी पर साइड इफ़ेक्ट न के बराबर होता है|
- आयुर्वेद में बॉडी को हेल्दी रखने पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाता है। इसके अनुसार यदि आपका शरीर स्वस्थ है, रोग प्रतिरोधी क्षमता उच्च है, और आप अपने दैनिक जीवन में आयुर्वेद को फॉलो करते हैं। तो पहले तो आपको कोई रोग होगा ही नहीं और अगर होगा भी तो जल्द ठीक हो जायेगा।
- आयुर्वेद के ग्रह चिकित्सा के एक भाग को आजकल पश्चिमी देशों में परा मनोविज्ञान के रूप में मान्यता मिल चुकी है, और इस पर नए नए शोध हो रहे हैं।
- आजकल जब मनुष्य की औसत आयु कम हो गयी है, युवावस्था में ही बुढ़ापे के लक्षण आने लगे हैं, ऐसे में रसायन का जीवन मे बहुत बड़ा रोल है। इसकी सहायता से जवानी को लम्बे समय तक बरकरार रखा जा सकता है। आयुर्वेद के ग्रंथों में कुछ ऐसे सूत्र मिलते हैं, जिन्हें अपनाकर वृद्ध को भी पुनः जवान किया जा सकता है, इसके सफल उदाहरण भी मिलते हैं।