अर्थराइटिस एक ऐसी बीमारी है, जो जोड़ों और इसके आसपास के टिशूज को प्रभावित करती है, जिसके कारण व्यक्ति को तेज दर्द होता है। सिर्फ भारत में ही  हर साल अर्थराइटिस के 10 लाख से ज्यादा मरीजों के मामले सामने आते हैं। स्वीडन में हुए एक अध्ययन के मुताबिक रह्यूमेटॉइड अर्थराइटिस और पुरुषों के टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन के लेवल में संबंध है। इसका अर्थ है कि अगर किसी व्यक्ति का टेस्टोस्टेरॉन लेवल कम हो गया है, तो उसे अर्थराइटिस होने की संभावना बढ़ जाती है। ये तो आप पहले से जानते हैं कि टेस्टोस्टेरॉन को सेक्स हार्मोन कहा जाता है और पुरुषों के शरीर के अंगों के विकास से लेकर सेक्सुअल एक्टिविटीज तक ये हार्मोन बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।

इसके पहले हुए एक अध्ययन में भी यही पाया गया कि जिन लोगों को अर्थराइटिस की समस्या थी, उनका टेस्टोस्टेरॉन लेवल कम था। हालांकि वैज्ञानिक इस बात का पता नहीं लगा पाए हैं कि ऐसा क्यों होता है। आइए अध्ययन  के बारे में जानने से पहले अर्थराइटिस और इसके लक्षणों के बारे में जान लें।

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रह्यूमेटॉइड अर्थराइटिस और इसके लक्षण

दुनिया में लगभग 100 तरह के अर्थराइटिस पाए गए हैं। इसके अलावा 200 तरह की स्वास्थ्य समस्याएं ऐसी हैं, जिनके कारण जोड़ों में दर्द की समस्या होती है। रह्यूमेटॉइड अर्थराइटिस भी उनमें से एक है, जो एक तरह की ऑटो इम्यून बीमारी है। यानी इस बीमारी में व्यक्ति का इम्यून सिस्टम ही उसके जोड़ों, हड्डियों और टिशूज को डैमेज करने लगता है। रह्यूमेटॉइड अर्थराइटिस होने पर जोड़ों में एक खास तरह का द्रव जमा हो जाता है, जिसके कारण अंगों को मोड़ने या हिलाने-डुलाने में दर्द होता है। आमतौर पर इस बीमारी के निम्न लक्षण हैं-

  • लेटने, उठने, बैठने और चलने में परेशानी
  • घुटनों को मोड़ने और अंगों को हिलाने में तेज दर्द
  • अंगों का लॉक हो जाना और मुड़ने में परेशानी होना
  • जोड़ों वाली जगह पर सूजन आ जाना
  • दिनभर थकान रहना

दुनियाभर में अर्थराइटिस के करोड़ों मरीज हैं, मगर वैज्ञानिक अभी तक इस बीमारी के सही कारण का पता नहीं लगा पाए हैं। इसी लिए रह्यूमेटॉइड अर्थराइटिस का कोई सटीक इलाज नहीं है। कुछ सामान्य दवाओं और फिजिकल थेरेपीज के द्वारा मरीज की परेशानी को कम कर दिया जाता है या सर्जरी के द्वारा घुटने बदल दिए जाते हैं। महिलाओं में ये बीमारी आमतौर पर 30 से 50 की उम्र में होती है, जबकि पुरुषों में इसका खतरा 45-60 की उम्र में बढ़ता है।

रह्यूमेटॉइड अर्थराइटिस और टेस्टोस्टेरॉन की कमी

इस अध्ययन के लिए स्वीडेन के वैज्ञानिकों ने 1921 से 1949 के बीच जन्म लेने वाले लगभग 33,000 लोगों का ब्लड सैंपल लिया और उनसे कुछ खास प्रश्नों के जवाब मांगे गए। इन ब्लड सैंपल्स को भविष्य में होने वाले अध्ययनों के लिए रख लिया गया। बाद के दिनों में जब इनमें से 104 व्यक्तियों को रह्यूमेटॉइड अर्थराइटिस की शिकायत हुई तो उनका ब्लड टेस्ट किया गया। साथ ही 174 ऐसे लोगों का भी ब्लड टेस्ट किया गया, जिनके जोड़ बिल्कुल फिट थे और जिन्हें कोई परेशानी नहीं थी।

इस टेस्ट के बाद वैज्ञानिकों ने पाया कि ज्यादा वजन और स्मोकिंग की आदत तो रह्यूमेटॉइड अर्थराइटिस के खतरे को बढ़ाती ही है, साथ ही टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन की कमी भी इसका एक बड़ा कारण होता है।

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लेकिन यहां आपको अपने टेस्टोस्टेरॉन लेवल को लेकर घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि शोध ऐसा बिल्कुल नहीं कहता है कि हर व्यक्ति जिसका टेस्टोस्टेरॉन कम है, उसे अर्थराइटिस हो जाएगा। मगर हां, अगर आपके परिवार में पहले से किसी को अर्थराइटिस की समस्या रही है, तो आपको इसके होने की संभावना बढ़ सकती है। इससे बचने के लिए हेल्दी खाइए और अपने शरीर में हार्मोन्स का लेवल बैलेंस रखिए।

Medically reviewed by Rishabh Verma, RP

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